Tuesday, September 7, 2010

परिचय


                                        पी.दयाल श्रीवास्तव




जन्मः‌                  ०४.०८.१९४४ दमोह म.प्र.
पिताः                   स्व.श्री रामसहाय श्रीवास्तव
शिक्षाः                  पत्रोपाधि इलेक्ट्रिकल इंजीनियर
सम्प्रतिः              सेवा निवृत्त कार्यपालन यन्त्री म.प्र.वि.मं.
प्रकाशनः             व्यंग्य संग्रह "दूसरी लाईन"
                           देश की विभिन्न पत्र पत्रिकाओं एवं समाचार पत्रों में 
                           लगभग २०० व्यंग्य प्रकाशित कुछ बाल गीत 
                           एवं कविताओं का भी प्रकाशन हुआ।
सम्मानः              राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा भारती रत्न एवं भारती भूषण सम्मान।
                           श्रीमती सरस्वती सिंह स्मृति सम्मान ।
           वैदिक क्रान्ति देहरादून एवं हम सब साथ साथ पत्रिका दिल्ली द्वारा लाईफ टाईम एचिवमेन्ट एवार्ड
                        अखिल भारतीय राष्ट्रभाषा सम्मेलन झांसी द्वारा हिन्दी सेवी सम्मान
                        शिव संकल्प साहित्य परिषद नर्मदापुरम् होशंगाबाद द्वारा व्यंग्य वैभव सम्मान।
                       युग साहित्य मानस गुन्तकुल मानन्ध्रप्रदेश द्वारा काव्य सम्मान।
सम्पर्कः          १२ शिवम सुन्दरम नगर छिंदवाड़ा म.प्र.
                       फोन नं. ०७१६२.२४७६३२

कुण्डलियां

(१)
कृष्ण पक्ष की अष्टमी और भादों का माह
भरत भूमि पर हुआ था चेतन पुंज प्रवाह
चेतन पुंज प्रवाह धन्य थी मथुरा नगरी
शक्ति अलौकिक तेज पुंज बनकर एक उभरी
युग प्रवर्तक कृष्ण अवतरित होकर आये
वासुदेव देवकी माता के पुत्र कहाये

(२)
उनके मामा कंस का बड़ा क्रूर था काम
वीर कृष्ण को मारने किये उपाय तमाम
किये उपाय तमाम जतन लाखों कर डाले
किन्तु पक्ष में रही गेंद कृष्णा के पाले
वो तो थे भगवान, कंस का क्या कर सकता था
विष्णु का अवदान भला कब मर सकता था


(३)
सदा सत्य के साथ में रहे कृष्ण भगवान
दिया धर्म को विजय का दुनिया को वरदान
दुनिया को वरदान बने अर्जुन के साथी
सदा जलाई धर्म दीप में सच की बाती
कुरुक्षेत्र में अर्जुन को जो ज्ञान कराया
वही संकलित ग्रन्थ ज्ञान, गीता कहलाया


(४)
एक-एक श्लोक में छुपे गूढ़ संदेश
जीवन की सच्चाई हैं गीता के उपदेश
गीता के उपदेश जिन्होंने समझे जाने
नहीं रहा कुछ शेष उन्हें दुनिया में पाने
पढ़ो रोज गीता और ओरों को पढ़वाओ
स्वयं ले गीता ज्ञान, ज्ञान घर-घर पहुँचाओ

कविता

                             उनकी याददाश्त
पुलिस थाने में
होली के रंगे
साहित्यकार के विरुध्द्
प्रथम सूचना रपट
दर्ज कराई गई
और थाने के
थानेदार को दिखाई गई
तो वह गुस्से में बोला
साहित्यकार को तुरंत पककड़कार
जेल में डाल दो
मार मार कर उसका
कचूमर निकाल दो
साला सचाई और
ईमान की बातें करता है
नैतिकता का स्वांग भरता है
सच बोलना
दंदडनीय अपराध है
ईमानदांरों को नहीं
छोड़ा जा सकता
यह कानून की किताब मॆं
लिखा है
मुझे अच्छी तरह याद है

मन्त्री पद
 हाय राम में हूआ अनाथा
मन्त्री पद से छूटा नाता
हायराम में हुआ अनाथा
कुछ दिन पद पर और रह जाता
फॊरेन में खाता खुल जाता
थोडे दिन पद धरम निभाया
पांच करोड कमा ही पाया
कोठी बंगला कार बनाई
दो सौ एकड़ धरती पाई
दो बेटों को फेक्ट्री खोली
बिटिया की उठवा दी डोली
दो पीढ़ी का माल कमाया
यूं ही जीवन व्यर्थ कमाया
कुछ दिन काश और मिल जाते
दस बारह बंगले बन जाते
दस पीढ़ी का माल कमाता
थोड़ा बहुत चैन पा जाता
अब तो मुझको कुछ न भाता
हाया राम में हुआ अनाथा


मालिक के चमचे

होती जयजयकार रहेगी अब मालिक के चमचों की
जगह जगह सरकार बनेगी अब मालिक के चमचों की|
चांद सितारे सूरज जब तक टिके हुये हैं अंबर में
रोज रोज दरकार रहेगी अब मालिक के चमचों की|
कल तक जो भटके थे दर दर सड़क छाप मजनूं बनकर
अपनी खुद की कार रहेगी अब मालिक के चमचों की|
अब तो बिन मांगे ही सब कुछ घर में आता रहता है
कोठी भी तैयार रहेगी अब मालिक के चमचों की|
लंदन पेरिस न्यूयार्क में जा इलाज करवायेंगे
जब पत्नी बीमार पड़ेगी अब के चमचों की|

नव गीत


टप् टप् टप् बूंद गिरे 

टप् टप् टप् बूंद गिरे
अंतस में हूक उठे
मेघ बजे |
आमों  की बगिया मॆं 
है मस्ती बौराई
बरसेंगे गरज गरज
सूचना है ये आई
मत बरसो मत बरसो
कौन कहे | 

झरनों की पर हर हर
मन जाता रीझ रीझ
गुन गुन करते हँसते
हरे हरे वन उपवन्
सर सर सर चले पवन
विटप हिले |

सावन रातों की में
घर सजना बिन सूना
दिवस ढोये कांधे पर
रातों दुख दूना का
मन के दीपक लगते
बुझे बुझे |